महिला सषक्तिकरण में पंचायती राज की भूमिका

 

अंजली कुमारी

नीलाम्बर पीताम्बर विष्व विद्यालय मेदिनीनगर, पलामू, झारखण्ड, भारत।

*Corresponding Author E-mail: anjali.guddi89@gmail.com

 

ABSTRACT:

भारत एक लोकतांत्रिक देष है, और लोकतंत्र की सबसे छोटी इकाई ग्राम पंचायत होती है, जो स्थानीय स्वषासन में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करती है। भारत में पंच परमेष्वर तथा महिला स्वतंत्रता की परंपरा प्राचीन काल से ही प्रचलित थी। पंचपरमेष्वर के रूप में ईमानदार और निष्ठावान सदस्य के रूप में नियुक्त होकर सच्चा और सस्ता न्याय देते थे। तथा महिलाएं स्वतंत्रतापूर्व तथा महिलाए स्वतंत्रता पूर्वक अपने को साक्षर, षिक्षित और सषक्त बनकर, सामाजिक व्यवस्था को संतुलित एवं हितकारी बनाने में बहुत हद तक सफल हो पायी है। पंचायती राज की शुरूआत सन 1959 में की गई। तभी से यह सुनिष्चित किया गया कि देष में समग्र विकास में महिलाओं को अनदेखा नहीं किया जा सकता है। लेकिन पुरूष प्रधान एवं पुरूषोचित मानसिकता के पोषक समाज में आधि दंनियाँँ हिस्सेदारी कही जाने वाली महिलाओं का चारदिवारी के अंदर कैद किया गयाा, अथवा महिलाओं को घरों की चारदिवारी के अंदर बंद रखने के लिए सतत् प्रयास किया गया। ताकि वे निखर, अविकसित और शक्तिहीन हो जाए। जिससे उनका समाज के कार्यों स्वयं के विकास में योगदान नहीं के बराबर बना रहे। और ऐसी व्यवस्था बहुत हद तक सफल बनी रही। इसका मूल कारण महिलाओं का अषिक्षित होना, उनमें जागरूकता का अभाव होना, समजा में रूढ़ीवादिता का वर्चस्व आदि मूख्य रूप से उतरदायी है।

 

KEYWORDS: राजनीति विज्ञान, महिलाओं के सषक्तिकरण में पंचायती राज की महत्वपूर्ण भूमिका

 

 


INTRODUCTION:

महिलाओं के सषक्तिकरण में पंचायती राज की महत्वपूर्ण भूमिका रहा है। पंचायती राज व्यवस्था में महिलाओं के सामाजिक, आर्थिक, शौक्षिक राजनैतिक आदि क्षेत्रों में सषक्त करने में विषेष भूमिका रही है। जिससे आज महिलाओं में षिक्षा, रोजगार, जागरूकता, आत्मविष्वास, निर्णय क्षमता, आत्मबोध की क्षमता का विकास हुआ है। सौभाग्य से सन 1947 में जब भारत स्वतंत्र हुआ, तो पंचायती राज व्यवस्था को पूर्नजीवित और पूर्ण रूप से सक्रिय करने का प्रयास किया गया। फिर भी पुरूषों ने सैकड़ो वर्षों की दासता वाली मानसिकता को तथा महिलाओं में व्याप्त निरक्षरता और अबलापन की स्थिति के कारण पंचायती राज बहुत हद तक सक्रिय नहीं हो पायी। इस विफलता के लिए उतरदायी अनेकों कारण में से एक प्रमुख यह था कि पंचायती राज व्यवस्था में महिलाओं की सहभागिता 4 प्रतिषत तक ही निर्धारित रहती थी। उस स्थिति को सुधारने के लिए भारतीय संविधान में 1992 में 73वें और 74वें संविधान संसोधन विधेयक पारित किया गया, जिसमें पंचायती राज व्यवस्था को सुधार कर महिलाओं की सहभागिता का प्रतिनिधित्व की संख्या में वृद्धि हो सके।

 

समस्या कथन

वर्तमान समय में महिला सषक्तिकरण और पंचायती राज अध्ययन अति आवष्यक है ताकि महिला सषक्तिकरण के वास्तविक ज्ञान का प्रयोग वर्तमान समय में विभिन्न विषयों के साथ समन्वय कर नये ज्ञान का निर्माण द्वारा महिला सषक्तिकरण से सर्वागीण विकास हो सके। इसी बात को ध्यान में रख कर इस अध्ययन में यह जानने का प्रयास किया गया है कि किस राजनीतिक क्षेत्र में महिला सषक्तिकरण गुणों का उनकी कार्य क्षमता पर पड़ने वाले प्रभाव सम्बन्धि उपयोगिता हो रही है। या नहीं ताकि भविष्य में उन्हे सही मार्गदर्षन देकर उनका संतुलित उपयोग किया जा सके।

 

महिला सषक्तिकरण

महिलाओं को विषेष योजनाओं, विषेष सुविधाओं कानूनो का लाभ देकर उन्हे मजबूत करना और उनके मन में यह भाव पैदा करना है कि हर क्षेत्र में पुरूषों के बराबर है। इस प्रक्रिया को महिला सषक्तिकरण कहा जाता है। आज महिलाओं को मजबूत करने की आवष्यकता इसलिए पडी कि बिते हजारों साल का इतिहास देखा जाए तो मानव समाज में पुरूष की प्रधानता रही है। और महिलाओं के साथ भेदभाव किया जाता है। जिसके कारण बहुत से कार्य में महिला पिछड़ जाती है। पुरूषों के बराबर महिलाओं को लाने के लिए महिला सषक्तिकरण को हर क्षेत्र में बढ़ाव मिल रहा है।

 

अध्ययन के उद्देष्य

वर्तमान अध्ययन में शोधकर्Ÿाा द्वारा प्रस्तावित शोध के लिए निम्नलिखित उद्देष्यों का निर्माण किया गया है-

1. पंचायती राज्य के ऐतिहासिक परिपेक्ष्य का विष्लेषण करना।

2. अध्ययन में महिलाओं की सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक पृष्ठभूमि का परीक्षण करना।

3. पंचायती राज में महिला भागिदारी के स्वरूप एवं समाज पर पड़ने वाले प्रभावों का अध्ययन करना।

4. पंचायती राज व्यवस्था के तहत् ग्रामीण महिलाओं की वर्तमान परिवेष का तात्कालिन प्रस्थिति को ज्ञात करना।

5. महिला के उत्थान (स्वास्थ्य, षिक्षा, रोजगार, एवं जाबरूकता) में पंचायती राज व्यवस्था द्वारा किए गए प्रयासों का अध्ययन करना।

 

अध्ययन की परिकल्पना

1. पंचायती राज व्यवस्था, द्वार किए गए प्रवधानों एवं सरकार द्वारा चलाए जा रही योजनाओं से महिलाओं के वर्तमान स्थिति में संधार हुआ है।

2. झारखण्ड में पंचायती राज व्यवस्था मे तहत् महिलाओं की बढ़ती भागीदारी के परिणामस्वरूप उनमें सामाजिक आर्थिक राजनीतिक सुदृढ़ता आई है।

3. ग्रामीण महिलाओं में पंचायती राज व्यवस्था द्वारा जितना भी भागीदारी अधिक होगी उतनी ही अधिक ग्रामीण महिलाएं समृद्ध और सषक्त होगी।

4. पंचायती राज व्यवस्था की कार्यप्रणाली से महिलाओं में सहकारिता की भावना का विकास हुआ है, तथा सरकार द्वारा संचालित महिला विकास एवं कल्यानणकारी योजनाओं के पगति रूचि जागृत हुई है।

 

अध्ययन की आवष्यकता एवं महत्व

प्रस्तुत शोध अध्ययन की सार्थक्ता वर्तमान समय में महिला सषक्तिकरण गुणों का अध्ययन करने से है। जो पंचायती राज में राजनीतिक के माध्यम से महिलाओं में महिला सषक्तिकरण गुणों का विकास कर व्यक्तित्व का विकास किया जा सके। क्योंकि राजनीतिक के क्षेत्र में महिला सषक्तिकरण गुणों में दृष्टिकोण, अवधारण या विष्वास है, जो परिवेष के प्रति महिलाओं को महिला सषक्तिकरण गुणों एवं व्यवहार के आधार पर समाज में महिलाओं को प्रभावित निर्धारित करता है। मानव जीवन का प्रत्येक कार्य किसी किसी मूल्य से संबंधित होता है। यह महिला सषक्तिकरण गुण अपने जीवन के प्रारंभ वर्षों से ही सीखने लगते है, और धीरे-धीरे अपने अंदर ग्रहण कर लेते है। महिलाओं में महिला सषक्तिकरण गुणों से समाज प्रभावित होते है।

 

संबंधित शोध साहित्य का अध्ययन

संबंधित साहित्य का अध्ययन अनुसंधानकर्Ÿाा के हाथ में एक रास्ता रहा है। जिसके आधार पर मंजिल की ओर सुगमता से जा सकता है। पंचायती राज व्यवस्था के वर्तमान स्वरूप को संवैधानिक माना गया है। इस संवैधानिक कदम के पश्चात ग्रामीण महिलाओं के संषक्त होने का मार्ग प्रषस्त हुआ है। अतः इस अध्ययन से पहले जितने भी शोधकर्Ÿाा पूर्व में अध्ययन किए है उन्होने क्या पाया उस परिणाम को भी अध्ययन करना आवष्यक है जो अग्रलिकखत है -

1. रजनी कोठारी (1970):- ने अपनी पुस्तक च्वसपजपबे पद प्दकपं में लिखा की जातिय एवं अन्य पक्षों का स्थानिय स्वषासन पर प्रभाव पड़ता है।

2. महिपाल (1996):- ने अपनी पुस्तक ‘‘पंचायती राज-अतीत, वर्तमान और भविष्य‘‘ में लिखा की अंतित से लेकर वर्तमान में स्थानीय स्वषासन में आए परिवर्तन में अधिक विस्तारी हुआ है।

3. कविता चौधरी 2012:- इन्होने घरेलु महिला हिन्सा पर एक शोध अध्ययन किया और शोध के अन्तिम अध्याय षष्ठम् में अध्ययन से सम्बंधित निष्कर्षों को बताने का प्रयास किया है अतः निष्कर्षत यही कहा जा सकता है कि भारत जैसे विषाल देष में महिलाओं के प्रति बढ़ती हिंसात्मक घटनाओं में घरेलू हिंसा एक मुख्य मुद्दा है, पुरूष प्रधान समाज में आज भी महिलाओं को उपेक्षा एवं प्रताड़ना का षिकार होना पड़ता है।

4. अन्जू (2000):- ने अपने अध्ययन इण्डियन कॉनसेप्ट ऑफ वीमेन्स विद स्पेषल रिफ्रेन्ष टू स्वामी विवेकानन्द में भारतीय समाज की संरचना, इसके सांस्कृतिक स्वरूप एवं सामाजिक रूढ़ियों का अध्ययन किया। शोधकर्Ÿाा के अनुसार वैदिक काल में महिलाओं की स्थिति संतोषजनक थी। उस समय महिलाओं को निर्णय- निर्माण शक्ति का उपयोग एवं राजनैतिक एवं सांस्कृतिक क्रियाकलापों में सहभाग करने की पूर्ण आजादी थी परन्तु वैदिक काल के पश्चात् महिलाओं की स्थिति में गिरावट आने लगी। स्वामी विवेकानन्द के विचारों में प्राचीन भारतीय महिलाओं की अवधारणा में समानता पायी जाती है। ये भारतीय महिलाओं को सम्मानजनक स्थान प्रदान करते है। उनके अनुसार राष्ट्रª की उन्नति महिलाओं की उन्नति पर निर्भर करती है। षिक्षा के द्वारा महिलाओं के जीवन स्तर को सुधारा जा सकता है। स्वामी विवेकानन्द महिलाओं के सामाजिक बहिष्कार को दूर करने तथा उनके व्यक्तित्व विकास, सषक्तिकरण एवं षिक्षित करने पर बल देते है।

 

अध्ययन की विधि

प्रस्तुत शोध कार्य का उद्देष्य विभिनन महिला सषक्तिकरण और पंचायती राज में महिला सषक्तिकरण गुणों का पता लगाना है। अतःइस उद्देष्य की पूर्ति हेतु ऑकड़ें एकत्रित करने के लिए सर्वेक्षण विधि का प्रयोग किया गया है। प्रस्तुत लधुषोध में शोधकर्Ÿाा द्वारा न्यादर्ष के चयन हेतु सर्वेक्षण विधि का प्रयोग किया जाएगा।

1. ऐतिहासिक विधि

2. सर्वेक्षण विधि

3. प्रायोगिक विधि

 

प्रस्तावित शोध प्रविधि

प्रस्तावित शोध में सर्वेक्षण विधि का प्रयोग किया गया।

 

अध्ययन का न्यादर्ष

न्यादर्ष में झारखण्ड के पंचायती राज की राजनीतिक महिलाओं को न्यादर्ष के रूप में चयन किया गया है। इसके द्वारा अनुसंधानकर्Ÿाा संपूर्ण जनसंख्या से प्रतिनिधि का चयन कर उस पर किये गये सम्पूर्ण अध्ययन के बारे में निष्कर्ष निकाल सकता है।

 

निष्कर्ष

महिला सषक्तिकरण में पंचायती राज की भूमिका का यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि महिला सषक्तिकरण गुणों का संबंध पंचायती राज से अवष्य है। पर इसकी उपलब्धता  के प्रति पंचायती राज का उच्च सोच सकारात्मक जिम्मेदारी अवष्य होनी चाहिए। सभी पंचायती राज को अपने स्तर पर प्रषिक्षण कार्य करना होगा, वही इस अध्ययन में महिला समूह का महिला सषक्तिकरण गुणों के प्रति सोच धनात्मक आया है तथा परिकल्पना में दो परिकल्पना स्वीकृत हुई और एक परिकल्पना अस्वीकृत हो गई। महिला पंचायती राज के प्रषिक्षण काल में ही यदि महिला सषक्तिकरण कुषलता का पंचायती राज में चुनाव उचित ढंग से उसकी योग्यतानुसार तथा कार्य क्षमतानुसार हो जाए तो आगे चलकर उसे जीवन में डरने का आवष्यकता नहीं है और कोई भी कार्य करने में असुविधा होगी। स्वस्थ्य पर्यावरण एवं पंचायती राज में महिला सषक्तिकरण गुणों के कारण हमारा व्यवहार या क्रिया प्रतिक्रिया संतुलित रहती है। जिसके कारण हमें और हमारे आस-पास के वातावरण से उचित समायोजन में बाधा उत्पन्न नहीं होती है।

 

अनुसंधानकर्Ÿाा द्वारा संबंधित विषय में अध्ययन का कारण महिला सषक्तिकरण गुणों का पंचायती राज में तुलनात्मक अध्ययन करना था, जिसकी सहायता से पंचायती राज में महिलाओं की प्रषिक्षण के समय से ही महिला सषक्तिकरण को जागरूकता किये जाने की आवष्यकता है। जिससे महिला सषक्तिकरण को स्वस्थ रखने के लिए पंचायती राज में आवष्यक वातावरण को क्रियान्वित करने में सहायता मिलेगी। राजनीतिक व्यक्ति को स्वस्थ पंचायती राज पर्यावरण का निर्माण कर महिला सषक्तिकरण गुणों के आधार पर धनात्मक रूप से राजनीतिक में आने का समाधान करने एवं राजनीतिक में समायोजन करने में सहायता प्राप्त करते रहना चाहिए।

 

शोध के अन्त में अध्ययन से सम्बंधित निष्कर्षों को बताने का प्रयास किया है।

1. अध्ययन से निष्कर्ष निकलता है कि महिला सषक्तिकरण में पंचायती राज की भूमिका में महिलाओं के साथ आज भी भेदभाव कायम है।

2. समीज में आज भी अधिकांषतः पंचायती राज की राजनीतिक में पुरूषों की भूमिका को ही प्राथमिकता दी जाती है।

3. महिलाओं के पंचायती राज में जितने पर उत्सव नहीं मनाया जाता है। इसके पीछे यह कारण निकल कर आए हैं कि आज भी पुरूष को महिला से आगे माना जाता है।

4. परम्परागत रूप से यदि महिला सषक्तिकरण में पंचायती राज की भूमिका

5. है तो वह आज भी महिलाओं के सषक्तिकरण का परिणम है।

6. निष्कर्षत यही कहा जा सकता है कि भारत जैसे विषाल देष में महिलाओं के महिला सषक्तिकरण का पंचायती राज के राजनीतिक एक मुख्य मुद्दा है, जो की यह दर्षाता है।

7. वर्तमान में महिला सषक्तिकरण का राजनीतिक में विषेष प्रभाव है।

8. पुरूष प्रधान समाज में आज भी महिलाओं को राजनीतिक में उपेक्षा एवं प्रताड़ना का षिकार होना पड़ता है।

9. अधिकांष लोक राजनीतिक में महिलाओं का जबरन रोकने, इस प्रकार हिंसा को हिंसा मानते ही नहीं है।

10. पुरूषों की निकृष्ट मानसिकता एवं द्वेषपूर्ण नीति का परिणाम ही महिला सषक्तिकरण का राजनीतिक हिंसा है जो वर्तमान समाज को दूषित कर रहा है।

 

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Received on 05.10.2024         Modified on 26.10.2024

Accepted on 08.11.2024         © A&V Publication all right reserved

Int. J. Rev. and Res. Social Sci. 2024; 12(3):167-171.

DOI: 10.52711/2454-2687.2024.00028